Page 63 - IIM(V)Issue_10 Feb_V4
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IMPRESSIONS






                                                              Poetry




                        “प्रबंधन के प्रबंध में”

                        प्रबंधन के प्रबंध में,

                        कहाँ- कहाँ न भटके हम,

                        फिर एक रोज, ये शमा ढली,

                        बुलाने लगी हमें वाइजैग की गली,

                        कू-ब-कू चर्चा -ए-दौर चल पड़ा था,
                        कि अब उम्र-ए-विशाल -ए-प्रबंधन सामने खड़ा था।




                        तो फिर बांध पोटली, ऐसे निकले, हम अपने आंगन से,
                        जैसे जाता हो कोई दरवेश कूचा-ए-जाना की महफ़िल से,

                        अब पाओं रुके सुन्दर सर्व विद्या की राजधानी में,

                        थी धरा जो चारो ओर घिरी भूधर की सानी में।




                        जब आया था सूरज, आसमाँ में रौशनी लेकर,
                        लगा बरसे हैं गोले अग्नि के , गए सब सुकूँ लेकर।

                        लगे भटकन, यूही जब, आस न उल्लास का संग था,

                        कोई तो यार मुझको ले गया, जहाँ पारावर तट था,
                        थे एक ओर अगिनत गुरुजन, जीवन की राह बताने को,

                        वहीँ खींच रही मुझको दुनिया, मस्ती में डूब जाने को,

                        शैलों पर टपकती बूंदों ने, गजब रंग ढाया था,






                        जलधर जल बहाने,खुद धरा के पास आया था।

                        विहंगम दृश्य यह, मेरे मन को मानों यूँ लुभाता है,

                        मैं इसकी खातिर जग को छोड़ आऊं , यह बताता है।
                        बीते बरस, और आये मौसम , अब प्रशिक्षण के,

                        था मन में कौतुहल, फिर भी निशा, भारी थी हर पल के।।



                         Sushant,
                         Program Associate PGPMCI




        62 VOL.6/ ISSUE 1, SEP-DEC 2024
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